गांव बठोई खुर्द के युवा किसान धान की खेती न कर पॉली हाउस में देसी खीरे उगाकर अच्छ मुनाफा कमा रहे हैं। युवा किसान बलजिंदर सिंह का कहना है कि पंजाब में पानी के हालतों को देखते हुए, अब रिवायती खेती को कम कर देना चाहिए।
इसलिए उन्होंने पहली बार एक एकड़ एरिया में देसी खीरा लगाया है। वह इसकी खेती के लिए आर्गेनिक खाद खुद ही तैयार कर रहा है। इस खीरे की खास बात यह है कि इस पर किसी प्रकार के कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं किया जाता।
खीरे की बेल को 15 दिन के अंदर 100 ग्राम कैल्शियम डाला जाता है। फसल साल में दो बार दो महीने चलती है और 22 से 25 रुपए के बीच रेट मिलता है। धान की फसल लगाने से पानी का लेवल तो नीचे जाता ही है, साथ में मुनाफा भी कम होता है।
देसी खीरा साल में दो बार जून-जुलाई आैर अक्टूबर-नवंबर में होता है, पानी की होती है बचत
चाइनीज खीरे से अलग है देसी खीरा, चार लाख रुपए आता है खर्च
साल में दो बार खीरे की फसल की खेती होती है। इससे पहले गर्मी के दो महीने जून व जुलाई और सर्दी के अक्तूबर आैर नवंबर में फसल लगती है। किसान की मानंे तो बीज से लेकर लेबर तक चार महीने में करीब 4 लाख रुपए खर्च अाता है और मुनाफा 18 लाख के करीब होता है।
चाइनीज खीरे से देसी खीरे की अलग पहचान है। चाइनीज खीरे की चमक ज्यादा होने के साथ ही बाहरी परत पर किसी प्रकार के रेशे नहीं होते। देसी खीरे में बाहरी परत पर कई जगह अलग-अलग निशान के साथ रेशे देखे जा सकते हैं। इस पर किसी प्रकार के पेस्टिसाइड का इस्तेमाल नहीं किया जाता।
पॉलीहाउस में खेती से होती है पानी की बचत
पॉलीहाउस में खीरे की खेती करने से पानी की बचत की जा सकती है। इसके लिए किसान तुपका प्रणाली से पानी बेल तक पहुंचाता है। इसमें उतना पानी ही इस्तेमाल किया जाता है, जितना पौधे को चाहिए। देसी खीरे की बेल 9 फीट तक बढ़ती है। जैसे-जैसे यह बढ़ती है वैसे ही पानी की मात्रा कम या ज्यादा हो सकती है। खीरे की बेल को 15 दिन के अंदर 100 ग्राम कैल्शियम डाला जाता है।