इस महिला से सीखें मशरुम की खेती से 50 लाख तक कमाने का फार्मूला

महिलाओं का सम्मान अब औपचारिक नहीं रह गया। महिलाओं ने उन क्षेत्रों में पदापर्ण किया है, जहां संभावना भी नहीं हो सकती थी। ऐसी ही इनोवेटिव मशरूम ग्रोअर है हरियाणा के करनाल की सीमा गुलाटी। गुलाटी ऐली मशरूम के नाम से करनाल हरियाणा में उत्पादन कर रही है। यह मशरूम उत्पादों पर कार्य कर रही है। सीमा गुलाटी ने तीन लाख रुपए प्रति किलोग्राम बिकने वाली कोर्डिसेफ (मीलिट्रीज) जिसे कीड़ा जड़ी मशरूम कहते है को उगाने में सफलता हासिल की है।

इसके लिए उन्होंने चीन व थाईलैंड में प्रशिक्षण लिया। नोर्थ इंडिया में यह पहली मशरूम उत्पादक है, जिन्होंने बेशकीमती कोर्डिसेफ मशरूम उगा रही है। 2014 में उन्होंने मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण लिया। इसके बाद उन्होंने मशरूम की हार्वेस्ट व कोल्ड चैन विकसित की। इसके लिए पेरिस में प्रशिक्षण लिया। उन्होंने कहा कि कार्डिसेफ कैंसर, खासकर मशरूम ब्रेन कैंसर या ब्रेस्ट कैंसर, किडनी, फर्टीलिटी इंप्रूवमेंट से अन्य कई बीमारियों के लिए रामबाण है। अब वह सूखाकर ग्रीन टी, लेमन टी समेत अन्य प्रोडक्ट तैयार कर रही हैं।

कीचन गार्डन से मशरूम उत्पादन शुरू किया था गायत्री ने

गायत्री देवी राठौर ने बताया कि 2 साल की उम्र में उसे पोलियो हो गया था। पिता ने दिल्ली में इलाज करवाया, हालांकि चलने में थोड़ी सी दिक्कत है, लेकिन वह अपना सारा काम खुद करती है। पति टीचर है। पिता व पति के सहयोग से ही वह आज इस मुकाम तक पहुंची हैं। गायत्री ने दसवीं तक की शिक्षा ली है। अपने किचन गार्डन में सब्जियां उगाई।

मशरूम का एक दो बैग से उत्पादन शुरू किया। 2006 से मशरूम उगाना शुरू किया। वर्ष 2014 में उन्होंने केवीके सांगरिया से प्रशिक्षण लिया। राजस्थान के अलावा पंजाब, हरियाणा में इनके मशरूम की भारी मांग है। वह बटन, ढ़ीगरी व मिल्की मशरूम का उत्पादन कर रही हैं।

25 महिलाओं और 15 पुरूषों को मशरूम यूनिट में रोजगार दिया है। उन्हें 300 रुपए दिहाड़ी दी जाती है। गायत्री देवी प्रतिदिन 1 टन मशरूम का उत्पादन करती है। डीडी किसान ने इनके ऊपर एक डाक्यूमेंटरी भी बनाई है। गायत्री को दैनिक भास्कर वूमैन ऑफ द ईयर पुरस्कार समेत कई राज्यस्तरीय पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।