कम पानी और कम लगत से ऐसे करें सतावर की खेती, एक किलों की कीमत है 50 रुपए

प्रदेश के किसान परमपरागत खेती की बजाए इजराइल तकनीकी से औषधीय खेती को प्राथमिकता देने लग गए है। इस बार एक अनुमान के तौर पर करीब 100 एकड़ से ज्यादा कृषि भूमि पर नेपाली सतावर की पौध रोपित की गई है। विशेषज्ञों के अनुसार हरियाणा में जुलाई से अगस्त तक सतवार की पौध रोपित करना चाहिए। हालांकि पहाड़ी एरिया में कुछ किसान सितंबर में भी सतवार की पौध रोपित करते है। एक एकड़ में 36 इंच के 48 बैड बनाकर डब्ल्यू सेप में पौधे रोपित करने से ज्यादा लाभ मिलता है।

पौधे से पौधे की दूरी 2 बाइ पौने 2 रखनी चाहिए। एक एकड़ में 12 हजार पौधे ही रोपित होंगे। ताकि उनकी ग्रोथ अच्छी हो। सतावर की खेती में लागत भी परमपरागत खेती की अपेक्षा काफी कम आएगी। वर्तमान में हरिद्वार या हिमाचल के ऊना से किसान पौध मंगवा रोपित कर रहे है। नर्सरी से एनसीआर में प्रति पौध पहुंचने का खर्च करीब 4 से साढ़े रुपए का आता है। वहीं अपनी नर्सरी तैयार करने पर प्रति पौध लागत करीब 2 से सवा दो रुपए आती है। एक एकड़ में करीब 36 हजार रुपए की पौध रोपित होती है,वहीं रोपित करने की लेबर का खर्च करीब प्रति एकड़ 6 हजार रुपए आता है।

नेपाली सतावर के साथ अन्य फसलें भी

नेपाली सतावर को इजराइल तकनीकी के साथ रोपित किया जाता है। जिसमें 36 इंच के बैड बनाए जाते है। बैड के साइड में बची जगह पर आसानी से दलहनी या सब्जी की खेती कि जा सकती है। जिसमें मुंग,गोभी सहित अन्य फसल है।

पानी की लागत कम आती है

नेपाली सतावर की खेती में पानी की लागत अन्य फसलों की बजाए अपेक्षाकृत कम आती है। जो पानी अतिरिक्त फसल में इस्तेमाल किया जाता है,उसी की नमी से सतावर की पूर्ति हो जाती है। वहीं नलाई -गुड़ाई भी कम करनी होती है। औषधीय फसल होने के कारण रोग लगने की संभवाना भी काफी कम रहती है। जिससे दवा या स्प्रे पर होने वाले अतिरिक्त खर्च नहीं होता। नेपाली सतवार की पौध रोपित करते किसान।

सतावर के लिए उपयुक्त जलवायु

सतावर की खेती के लिए उष्ण तथा आर्द्र जलवायु उत्तम होती है। क्षेत्र का तापमान 10-40 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। सतावर की फसल में सूखे को सहन करने की अपार शक्ति होती है,परन्तु जड़ों के विकास के समय मिट्टी में नमी की कमी से उपज प्रभावित होती है। इस लिए जड़ों में नमी बनाए रखना जरूरी है। सतावर की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी जिसमें कार्बनिक तत्व प्रचुर मात्रा में व जल निकासी की सुविधा हो। बलुई मिट्टी से जड़ों को आसानी से बिना क्षति खोद कर निकाला जा सकता है।

जिससे किसान को ज्यादा लाभ मिलता है। सतावर की मांसल जड़ें स्वाद में मधूर, रसायुक्त, कड़वी, भारी, चिकनी तथा तासिर में शीतल होती है। इनका इस्तेमाल पुरूष प्रजनन संबधित व महिलाओं के कई प्रकार के रोगों की दवा बनाने में किया जाता है। वहीं स्त्रियों के लिए टॉनिक,ल्युकोरिया,अनियमिता मासिक चक्र,एनीमिया,गर्भपात,मेनोपासक सहित अन्य रोगों की दवा बनाने में किया जाता है।

मार्केट के उतार-चढ़ाव का असर नहीं

डाॅ. दिलबाग गुलिया का कहना है कि नेपाली सतावर एक औषधीय फसल है। इसकी जड़ो को प्रोसेस करने के बाद तेल निकाला जाता है। जिसकी मांग बहुत ज्यादा रहती है। इसी कारण फसल को रोपित करने के बाद कंपनी व किसान के बीच एक एमओयू साइन हो जाता है। जिससे मार्केट में होने वाले उतार-चढ़ाव का किसान पर कोई असर नहीं पड़ता।

वहीं कुछ किसान सीधा मार्केट में भी बेचते है। जहां 30 से 50 रुपए प्रति किग्रा. का भाव मिलता है। वहीं प्रोसेस करने के बाद तेल का भाव 23 से 27 हजार रुपए प्रति लीटर मिलता है। फसल तैयार होने में 20 से 24 माह का समय लगता है। इस दौरान किसान सतावर के अलावा 4 सीजनल फसल भी आसानी से ले सकता है। जो एक अतिरिक्त आमदनी होती है।