ये है काबुली चने की नई किसम, देती है 25 क्विंटल तक पैदावार

काबुली चना की हाल ही विकसित की गई नई किस्म एसआर-10 प्रति हैक्टेयर में 20 से 25 क्विंटल तक उत्पादन दे सकती है। इस किस्म की खास बात यह है कि इसके 100 दानों का भार 50 ग्राम से ज्यादा होता है। इस किस्म की बुआई किसान नवंबर के पहले सप्ताह से कर सकते हैं। मार्च तक इसकी फसल पक कर तैयार हो जाती है।

हाल ही राजस्थान में विकसित चना किस्म एसआर-10 का कृषक पौध अधिकार प्राधिकरण नई दिल्ली द्वारा पंजीयन किया गया है। चालू रबी सीजन में इस किस्म का बीज उपलब्ध करवाया जाएगा।

हर चने की किस्म : कटाई के बाद वर्षभर मिलेगा उत्पादन

हरे चने की आरएसजी-991 किस्म से किसान फसल कटाई के बाद वर्षभर आय प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि यह किस्म रोग प्रतिरोधी होने के साथ प्रसंस्करण के लिए उपयुक्त मानी गई है। झुंझुनूं, टोंक और राज्य के अन्य जिलों में इस किस्म को उपजाकर किसान बाजार भाव से 10 से 12 फीसदी ज्यादा आमदनी प्राप्त कर रहे हैं।

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक किसान मटर की तरह इसके हरे छोले बेच सकते हैं यह किस्म हरे चने के लिए विकसित की गई है। इसकी कटाई के बाद इसके दानों का वैज्ञानिक विधि से भंडारण कर सकते हैं। भंडारित उपज में से बाजार की मांग के अनुसार हरे छोले तैयार कर बेच सकते हैं। हरे छोले तैयार करने के लिए दानों को रातभर पानी में भिगोना होता है।

किसान सुबह दानों को पानी से अलग कर और साफ पानी से धोकर बाजार में सप्लाई कर सकते है। इस किस्म के विकास के बाद से बाजारों में फ्राई चने का कारोबार तेजी से बढ़ा है। विशेषता : हरे चने की यह किस्म सिंचित और असिंचित क्षेत्र में खेत के लिए उपयुक्त मानी गई हैं। फसल 135-140 दिन में पक कर तैयार हो जाती है।

बुआई के 50-60 दिन की अवस्था पर फली बनना शुरू हो जाती है। बारानी स्थिति में यह किस्म 18-20 और सिंचित अवस्था में 22 से 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज देती है। यह किस्म उकठा, शुष्क जड़ गलन, काला जड़ गलन, सूत्र-कृमि और फली छेदक कीट के प्रति प्रतिरोधक क्षमता रखती है।