अब पराली से बढ़ेगी किसानों की आमदन, आग लगाने की नहीं जरूरत, जानें कैसे

हर साल धान की कटाई के दिनों में किसानों और वातावरण के लिए सबसे बड़ी मुसीबत होती है पराली। लेकिन इस बार न सिर्फ पराली का सही तरीके से इस्तेमाल होगा बल्कि अब इसके इस्तेमाल से किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी। आपको बता दें कि पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए करनाल, कुरुक्षेत्र व अंबाला के सौ गांव को क्लाइमेट स्मार्ट बनाया जा रहा है। इन सभी गांव में आधुनिक खेती होने के साथ साथ यहाँ पर पराली का तिनका भी नहीं जलाया जाएगा।

इस मॉडल पर केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान द्वारा काम किया जा रहा है। यह कदम किसानों की आमदनी को बढ़ाने के लिए काफी अहम साबित होगा। इसके लिए किसानों को क्लाइमेट स्मार्ट खेती करने के तौर-तरीके भी सिखाए जा रहे हैं। इसमें पानी बचाने और फसल पर कम लागत में अधिक आमदनी के तरीके सिखाने पर फोकस है। संसथान के एक वैज्ञानिक का कहना है कि किसान एक साल में दो से तीन फसलें लेने के लिए 12 बार खेत की जुताई करता है।

जिसमें डीज़ल का खर्चा काफी ज्यादा होता है। इसी तरह गेहूं, धान में 180 किलोग्राम और मक्के की फसल में 175 किलोग्राम नाइट्रोजन देनी पड़ती है। लेकिन अगर किसान पराली जलाना बंद कर दें तो भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहेगी। अवशेष जमीन पर पड़े रहने से नमी बरकरार रहेगी। जिसके चलते फसल में एक पानी कम लगाना पड़ेगा। इसके बाद साल में सिर्फ दो बार खेत जोतना पड़ेगा। और गेहूं, मक्का जैसी फसलों में तो इसकी भी जरूरत नहीं होगी। यानि किसान करीब 4000 रुपये की बचत कर सकते हैं।

इसका एक फायदा ये भी होता है कि फसल में सिर्फ 120 किलोग्राम नाइट्रोजन में काम चल जाता है, क्योंकि अवशेष गलने के बाद भूमि में नाइट्रोजन की पूर्ति अपने आप हो जाती है। संसथान के वैज्ञानिकों का कहना है कि करनाल के 30 और कुरुक्षेत्र-अंबाला के 35-35 गांवों में क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर पर काम किया जा जाएगा। इन गांवों में अवशेषों को बिना आग लगाए खेत में ही मल्च कर आधुनिक और अच्छी खेती की जा सकेगी। जिससे किसानों को कम पानी और कम खर्च में ज्यादा उत्पादन मिलेगा और उनकी आमदनी बढ़ेगी।

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