अगर आप मधुमक्खी पालन शुरू करने के बारे में सोच रहे हैं तो आपको कुछ बातों को जरूर ध्यान में रखना चाइये, आइये जानते हैं इन सभी बातों के बारे में… देश में शहद के व्यवसायिक उत्पादन में विदेशी मधुमक्खी एपिस मेलिफेरा ने क्रांति लाई है। मधुमक्खी की इस प्रजाति के भारत में आने के बाद देश में शहद की मिठास बढ़ी है।
विदेश से एपिस मेलिफेरा को सबसे पहले हिमाचल में लाया गया। यहां से इस प्रजाति की मक्खी को देश के कोने-कोने में भेजा गया, जिससे देश में शहद के व्यवसायिक उत्पादन को पंख लगे और आज देश में करीब 90 हजार मीट्रिक टन के करीब शहद का उत्पादन हो रहा है।
1962 में पीयू के रिसर्च सेंटर में रखी थी एपिस मेलिफेरा
हिमाचल के नगरोटा बगवां में उस समय पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (पीएयू) का रिसर्च सेंटर था। विदेश से लाई गई मधुमक्खी एपिस मेलिफेरा को सबसे पहले यहां पाला गया। यहां क्वीन ब्रीडिंग की गई और इसके बाद इस मधुमक्खी को देश के अन्य राज्यों में भेजा गया।
इससे मीठे कारोबार में बूम आया। तब से लेकर आजतक व्यवसायिक मौनपालक मधुमक्खी की इसी प्रजाति को पालते आ रहे हैं। ये मधुमक्खी देसी मधुमक्खी एपिस सेराना से ज्यादा शहद देती है।
शहद उत्पादन के मामले में हिमाचल -पंजाब बराबर
हिमाचल प्रदेश में प्रतिवर्ष करीब 1500 मीट्रिक टन शहद का उत्पादन किया जाता है, इतना ही पंजाब में होता है। हिमाचल प्रदेश में 1600 लोग व्यवसायिक मधुमक्खी पालन से जुड़े हैं वहीं पंजाब में यह संख्या 3500 है।
हिमाचल और पंजाब दोनों में मधुमक्खी पालन की आपार संभावनाएं हैं। मधुमक्खी पॉलीनेटर का काम करती हैं, जो फलों, जड़ी-बूटियों और वनों की वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मधुमक्खियां ही हैं।
देश में सबसे पहले कांगड़ा के नगरोटा बगवां सेंटर में शुरू हुआ था बी कीपिंग
पूर्वोत्तर राज्य तक जानकारी लेने आते हैं..डॉ. यशवंत सिंह परमार यूनिवर्सिटी नौणी के कीट वैज्ञानिक डॉ. हरीश शर्मा ने बताया कि विदेशी एपिस मेलिफेरा और देसी एपिस सेराना की क्वीन ब्रीडिंग में नौणी यूनिवर्सिटी ने विशेषज्ञता हासिल की है। यहां वैज्ञानिक क्वीन ब्रीडिंग में प्रशिक्षिण देते हैं। यहां पूर्वोत्तर राज्यों के अलावा देश के अन्य हिस्सों के मौन पालक जानकारी लेते हैं।